Wednesday, January 22, 2025

ना जलाया जाता और ना ही दफनाया जाता तो आखिर कैसे होता है नागा साधुओं का अंतिम संस्कार !

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Yash Pandey
Yash Pandey
पत्रकार

प्रयागराज। महाकुंभ के दौरान साधु-संतों का जमावड़ा हर बार विशेष आकर्षण का केंद्र होता है, लेकिन इनमें सबसे रहस्यमयी और अनुशासन में बंधे नागा साधु होते हैं। उनका जीवन जितना कठिन और रहस्यमयी है, उतना ही अनोखा और धार्मिक मान्यताओं से ओतप्रोत है उनका अंतिम संस्कार। नागा साधुओं की मृत्यु के बाद उन्हें दाह संस्कार नहीं दिया जाता, बल्कि विशेष परंपरा के तहत भू या जल समाधि दी जाती है।

नागा साधु बनने के लिए घोर तपस्या करनी पड़ती है। इस प्रक्रिया में साधु जीवित रहते हुए ही अपना पिंडदान कर लेते हैं। यही कारण है कि उनकी मृत्यु के बाद उन्हें न तो मुखाग्नि दी जाती है और न ही पिंडदान किया जाता है। हिंदू परंपरा में जहां व्यक्ति के अंतिम संस्कार के दौरान दाह संस्कार और पिंडदान का विधान है, वहीं नागा साधु इससे अलग पूरी तरह विशिष्ट और सम्मानजनक परंपरा का पालन करते हैं।

कैसे दी जाती है नागा साधुओं को अंतिम विदाई?
नागा साधु की मृत्यु होने पर सबसे पहले उनके शव को स्नान कराया जाता है। इसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ उनके शरीर पर भस्म लगाई जाती है और भगवा वस्त्र से ढंका जाता है। इसके बाद उन्हें समाधि दी जाती है। समाधि की जगह को पवित्र रखने के लिए वहां सनातन निशान बनाया जाता है ताकि वह स्थान लोगों के अपमानजनक कार्यों से बचा रहे।

यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि नागा साधु सांसारिक जीवन का त्याग कर धर्म के रक्षक बन चुके होते हैं। वह पहले ही अपना पिंडदान और सांसारिक कर्तव्यों का त्याग कर चुके होते हैं, इसलिए उनकी चिता को अग्नि देना अशुभ माना जाता है।

आदि शंकराचार्य और नागा साधुओं का इतिहास
नागा साधुओं का इतिहास हजारों साल पुराना है। इसे आदि गुरु शंकराचार्य के समय से जोड़ा जाता है, जिन्होंने धार्मिक स्थलों और ग्रंथों की रक्षा के लिए नागा साधुओं की योद्धा सेना तैयार की थी। उन्होंने संदेश दिया था कि धर्म की रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र दोनों की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से नागा साधुओं को प्रशिक्षित किया गया और पूरे भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए तैनात किया गया।

नागा साधु न केवल धर्म के रक्षक हैं बल्कि भारतीय संस्कृति के मूल्यों के संरक्षक भी हैं। महाकुंभ जैसे आयोजनों में उनका शामिल होना भारतीय परंपराओं और अध्यात्म की महत्ता को दर्शाता है। उनकी समाधि की परंपरा उनकी तपस्या और त्याग के प्रति सम्मान का प्रतीक है।

नागा साधुओं की यह परंपरा न केवल धर्म के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है, बल्कि हमारे समाज में सनातन संस्कृति के गहरे जुड़ाव को भी उजागर करती है।

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